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संत कबीर के दोहे संग्रह - 01 to 100

  • बलिहारी गुरु आपनो, घड़ी-घड़ी सौ सौ बार।
    मानुष से देवत किया, करत न लागी बार।।०१।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • कबिरा माला मनहि की, और संसारी भीख।
    माला फेरे हरि मिले, गले रहट के देख।।०२।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • सुख मे सुमिरन ना किया, दु:ख में किया याद।
    कह कबीर ता दास की, कौन सुने फरियाद।।०३।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय।
    मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय।।०४।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
    माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।।०५।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • कबीरा ते नर अन्ध है, गुरु को कहते और।
    हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रुठै नहीं ठौर।।०६।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • पाँच पहर धन्धे गया, तीन पहर गया सोय।
    एक पहर हरि नाम बिन, मुक्ति कैसे होय।।०७।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • कबीरा सोया क्या करे, उठि न भजे भगवान।
    जम जब घर ले जायेंगे, पड़ी रहेगी म्यान।।०८।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • शीलवन्त सबसे बड़ा, सब रतनन की खान।
    तीन लोक की सम्पदा, रही शील में आन।।०९।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर।
    आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर।।१०।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • जो तोकु कांटा बुवे, ताहि बोय तू फूल।
    तोकू फूल के फूल है, बाकू है त्रिशूल।।११।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार।
    तरुवर ज्यों पत्ती झड़े, बहुरि न लागे डार।।१२।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • आय हैं सो जाएँगे, राजा रंक फकीर।
    एक सिंहासन चढ़ि चले, एक बँधे जात जंजीर।।१३।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • माँगन मरण समान है, मति माँगो कोई भीख।
    माँगन से तो मरना भला, यह सतगुरु की सीख।।१४।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • आया था किस काम को, तु सोया चादर तान।
    सुरत सम्भाल ए गाफिल, अपना आप पहचान।।१५।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • क्या भरोसा देह का, बिनस जात छिन मांह।
    सांस-सांस सुमिरन करो, और यतन कुछ नांह।।१६।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • गारी ही सों ऊपजे, कलह कष्ट और मींच।
    हारि चले सो साधु है, लागि चले सो नींच।।१७।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • दान दिए धन ना घटे, नदी ने घटे नीर।
    अपनी आँखों देख लो, यों क्या कहे कबीर।।१८।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • दस द्वारे का पिंजरा, तामे पंछी का कौन।
    रहे को अचरज है, गए अचम्भा कौन।।१९।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • हीरा वहाँ न खोलिये, जहाँ कुंजड़ों की हाट।
    बांधो चुप की पोटरी, लागहु अपनी बाट।।२०।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • कुटिल वचन सबसे बुरा, जारि कर तन हार।
    साधु वचन जल रूप, बरसे अमृत धार।।२१।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • मैं रोऊँ जब जगत को, मोको रोवे न होय।
    मोको रोबे सोचना, जो शब्द बोय की होय।।२२।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • सोवा साधु जगाइए, करे नाम का जाप।
    यह तीनों सोते भले, साकित सिंह और साँप।।२३।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • बाजीगर का बांदरा, ऐसा जीव मन के साथ।
    नाना नाच दिखाय कर, राखे अपने साथ।।२४।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • कबीरा जपना काठ की, क्या दिख्लावे मोय।
    ह्रदय नाम न जपेगा, यह जपनी क्या होय।।२५।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • पतिवृता मैली, काली कुचल कुरूप।
    पतिवृता के रूप पर, वारो कोटि सरूप।।२६।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • बैध मुआ रोगी मुआ, मुआ सकल संसार।
    एक कबीरा ना मुआ, जेहि के राम अधार।।२७।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • हर चाले तो मानव, बेहद चले सो साध।
    हद बेहद दोनों तजे, ताको भता अगाध।।२८।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • राम रहे बन भीतरे, गुरु की पूजा ना आस।
    रहे कबीर पाखण्ड सब, झूठे सदा निराश।।२९।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • जाके जिव्या बन्धन नहीं, ह्र्दय में नहीं साँच।
    वाके संग न लागिये, खाले वटिया काँच।।३०।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • तीरथ गये ते एक फल, सन्त मिले फल चार।
    सत्गुरु मिले अनेक फल, कहें कबीर विचार।।३१।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • सुमरण से मन लाइए, जैसे पानी बिन मीन।
    प्राण तजे बिन बिछड़े, सन्त कबीर कह दीन।।३२।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • हंसा मोती विण्न्या, कुञ्च्न थार भराय।
    जो जन मार्ग न जाने, सो तिस कहा कराय।।३३।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • कहना सो कह दिया, अब कुछ कहा न जाय।
    एक रहा दूजा गया, दरिया लहर समाय।।३४।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • वस्तु है ग्राहक नहीं, वस्तु सागर अनमोल।
    बिना करम का मानव, फिरैं डांवाडोल।।३५।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • कली खोटा जग आंधरा, शब्द न माने कोय।
    चाहे कहँ सत आइना, जो जग बैरी होय।।३६।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • कामी-क्रोधी-लालची, इनसे भक्ति न होय।
    भक्ति करे कोइ सूरमा, जाति वरन कुल खोय।।३७।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • जागन में सोवन करे, साधन में लौ लाय।
    सूरत डोर लागी रहे, तार टूट नाहिं जाय।।३८।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • साधु ऐसा चहिए,जैसा सूप सुभाय।
    सार-सार को गहि रहे, थोथ देइ उड़ाय।।३९।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • लगी लग्न छूटे नाहिं, जीभ चोंच जरि जाय।
    मीठा कहा अंगार में, जाहि चकोर चबाय।।४०।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • अन्तर्यामी एक तुम, आत्मा के आधार।
    जो तुम छोड़ो हाथ तो, कौन उतारे पार।।४१।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • सुमिरन में मन लाइए, जैसे नाद कुरंग।
    कहैं कबीर बिसरे नहीं, प्रान तजे तेहि संग।।४२।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • सुमरित सुरत जगाय कर, मुख के कछु न बोल।
    बाहर का पट बन्द कर, अन्दर का पट खोल।।४३।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • छीर रूप सतनाम है, नीर रूप व्यवहार।
    हंस रूप कोई साधु है, सत का छाननहार।।४४।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • ज्यों तिल मांही तेल है, ज्यों चकमक में आग।
    तेरा सांई तुझमें, बस जाग सके तो जाग।।४५।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • जा करण जग ढ़ूँढ़िया, सो तो घट ही मांहि।
    परदा दिया भरम का, ताते सूझे नाहिं।।४६।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • नहीं शीतल है चन्द्रमा, हिंम नहीं शीतल होय।
    कबीरा शीतल सन्त जन, नाम सनेही सोय।।४७।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • आहार करे मन भावता, इंदी किए स्वाद।
    नाक तलक पूरन भरे, तो का कहिए प्रसाद।।४८।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • जल ज्यों प्यारा माहरी, लोभी प्यारा दाम।
    माता प्यारा बारका, भगति प्यारा नाम।।४९।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • दिल का मरहम ना मिला, जो मिला सो गर्जी।
    कह कबीर आसमान फटा, क्योंकर सीवे दर्जी।।५०।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • जब लगि भगति सकाम है, तब लग निष्फल सेव।
    कह कबीर वह क्यों मिले, निष्कामी तज देव।।५१।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • फूटी आँख विवेक की, लखे ना सन्त असन्त।
    जाके संग दस-बीस हैं, ताको नाम महन्त।।५२।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • दाया भाव ह्र्दय नहीं, ज्ञान थके बेहद।
    ते नर नरक ही जायेंगे, सुनि-सुनि साखी शब्द।।५३।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • दाया कौन पर कीजिये, का पर निर्दय होय।
    सांई के सब जीव है, कीरी कुंजर दोय।।५४।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • जब मैं था तब गुरु नहीं, अब गुरु हैं मैं नाय।
    प्रेम गली अति साँकरी, ता मे दो न समाय।।५५।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • कबीरा धीरज के धरे, हाथी मन भर खाय।
    टूट एक के कारने, स्वान घरै घर जाय।।५६।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • ऊँचे पानी न टिके, नीचे ही ठहराय।
    नीचा हो सो भरिए पिए, ऊँचा प्यासा जाय।।५७।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • सबते लघुताई भली, लघुता ते सब होय।
    जौसे दूज का चन्द्रमा, शीश नवे सब कोय।।५८।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • मार्ग चलते जो गिरा, ताकों नाहि दोष।
    यह कबिरा बैठा रहे, तो सिर करड़े दोष।।५९।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • काया काठी काल घुन, जतन-जतन सो खाय।
    काया वैध ईश बस, मर्म न काहू पाय।।६०।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • सुख सागर का शील है, कोई न पावे थाह।
    शब्द बिना साधु नही, द्रव्य बिना नहीं शाह।।६१।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • बाहर क्या दिखलाए, अनन्तर जपिए राम।
    कहा काज संसार से, तुझे धनी से काम।।६२।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • फल कारण सेवा करे, करे न मन से काम।
    कहे कबीर सेवक नहीं, चहै चौगुना दाम।।६३।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • तेरा साँई तुझमें, ज्यों पहुपन में बास।
    कस्तूरी का हिरन ज्यों, फिर-फिर ढ़ूँढ़त घास।।६४।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • कबिरा यह तन जात है, सके तो ठौर लगा।
    कै सेवा कर साधु की, कै गोविंद गुन गा।।६५।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • तन बोहत मन काग है, लक्ष योजन उड़ जाय।
    कबहु के धर्म अगम दयी, कबहुं गगन समाय।।६६।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • जहँ गाहक ता हूँ नहीं, जहाँ मैं गाहक नाँय।
    मूरख यह भरमत फिरे, पकड़ शब्द की छाँय।।६७।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • बलिहारी वा दूध की, जामे निकसे घीव।
    घी साखी कबीर की, चार वेद का जीव।।६८।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • साधु गाँठि न बाँधई, उदर समाता लेय।
    आगे-पीछे हरि खड़े, जब भोगे तब देय।।६९।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • घट का परदा खोलकर, सन्मुख दे दीदार।
    बाल सने ही सांइया, आवा अन्त का यार।।७०।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • कबिरा खालिक जागिया, और ना जागे कोय।
    जाके विषय विष भरा, दास बन्दगी होय।।७१।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • ऊँचे कुल में जामिया, करनी ऊँच न होय।
    सौरन कलश सुरा भरी, साधु निन्दा सोय।।७२।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • सुमरण की सुब्यों करो, ज्यों गागर पनिहार।
    होले-होले सुरत में, कहैं कबीर विचार।।७३।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • सब आए इस एक में, डाल-पात फल-फूल।
    कबिरा पीछा क्या रहा, गह पकड़ी जब मूल।।७४।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • यह माया है चूहड़ी, और चूहड़ा कीजो।
    बाप-पूत उरभाय के, संग ना काहो केहो।।७५।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • जहर की जर्मी में है रोपा, अभी खींचे सौ बार।
    कबिरा खलक न तजे, जामे कौन विचार।।७६।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • लोग भरोसे कौन के, बैठे रहें उरगाय।
    जीय रही लूटत जम फिरे, मैँढ़ा लुटे कसाय।।७७।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • जो तु चाहे मुक्त को, छोड़े दे सब आस।
    मुक्त ही जैसा हो रहे, बस कुछ तेरे पास।।७८।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • साँई आगे साँच है, साँई साँच सुहाय।
    चाहे बोले केस रख, चाहे घौंट भुण्डाय।।७९।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • खेत ना छोड़े सूरमा, जूझे दो दल मोह।
    आशा जीवन मरण की, मन में राखें नोह।।८०।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • लीक पुरानी को तजें, कायर कुटिल कपूत।
    लीख पुरानी पर रहें, शातिर सिंह सपूत।।८१।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • सन्त पुरुष की आरसी, सन्तों की ही देह।
    लखा जो चहे अलख को, उन्हीं में लख लेह।।८२।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • भूखा-भूखा क्या करे, क्या सुनावे लोग।
    भांडा घड़ निज मुख दिया, सोई पूर्ण जोग।।८३।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • गर्भ योगेश्वर गुरु बिना, लागा हर का सेव।
    कहे कबीर बैकुण्ठ से, फेर दिया शुक्देव।।८४।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • कांचे भाडें से रहे, ज्यों कुम्हार का देह।
    भीतर से रक्षा करे, बाहर चोई देह।।८५।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • साँई ते सब होते है, बन्दे से कुछ नाहिं।
    राई से पर्वत करे, पर्वत राई माहिं।।८६।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • केतन दिन ऐसे गए, अन रुचे का नेह।
    अवसर बोवे उपजे नहीं, जो नहीं बरसे मेह।।८७।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • साधु सती और सूरमा, इनकी बात अगाध।
    आशा छोड़े देह की, तन की अनथक साध।।८८।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • हरि संगत शीतल भया, मिटी मोह की ताप।
    निशिवासर सुख निधि, लहा अन्न प्रगटा आप।।८९।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • आशा का ईंधन करो, मनशा करो बभूत।
    जोगी फेरी यों फिरो, तब वन आवे सूत।।९०।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • अटकी भाल शरीर में, तीर रहा है टूट।
    चुम्बक बिना निकले नहीं, कोटि पठन को फूट।।९१।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • अपने-अपने साख की, सब ही लीनी भान।
    हरि की बात दुरन्तरा, पूरी ना कहूँ जान।।९२।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • आस पराई राखता, खाया घर का खेत।
    औरन को पथ बोधता, मुख में डारे रेत।।९३।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • आवत गारी एक है, उलटन होय अनेक।
    कह कबीर नहिं उलटिये, वही एक की एक।।९४।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • उज्जवल पहरे कापड़ा, पान-सुपरी खाय।
    एक हरि के नाम बिन, बाँधा यमपुर जाय।।९५।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • उतते कोई न आवई, पासू पूछूँ धाय।
    इतने ही सब जात है, भार लदाय लदाय।।९६।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • अवगुन कहूँ शराब का, आपा अहमक होय।
    मानुष से पशुआ भया, दाम गाँठ से खोय।।९७।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • कबीरा संगति साधु की, जौ की भूसी खाय।
    खीर खाँड़ भोजन मिले, ताकर संग न जाय।।९८।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • एक ते जान अनन्त, अन्य एक हो आय।
    एक से परचे भया, एक बाहे समाय।।९९।।

    — संत कबीर दास साहेब


  • कबीरा गरब न कीजिए, कबहूँ न हँसिये कोय।
    अजहूँ नाव समुद्र में, ना जाने का होय।।१००।।

    — संत कबीर दास साहेब