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अंतरजामी एक तूं, आतम के आधार।
जो तुम छांड़ो हाथ तो, कौन उतारै पार।।२२०१।।— संत कबीर दास साहेब
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भवसागर भारी भया, गहरा अगम अथाह।
तुम दयाल दाया करो, तब पाऊं कछु थाह।।२२०२।।— संत कबीर दास साहेब
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सतगुरु बड़े दयाल हैं, संतन के आधार।
भवसागर अथाह सों, खेइ उतारै पार।।२२०३।।— संत कबीर दास साहेब
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अलख इलाही एक है, नाम धराया दोय।
कहै कबीर दो नाम सुनि, भरम परो मति कोय।।२२०४।।— संत कबीर दास साहेब
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राम रहीमा एक है, नाम धराया दोय।
कहै कबीर दो नाम सुनि, भरमि परौ मति कोय।।२२०५।।— संत कबीर दास साहेब
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काशी काबा एक है, एकै राम रहीम।
मैदा इक पकवान बहु, बैठि कबीरा जीम।।२२०६।।— संत कबीर दास साहेब
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एक वस्तु के नाम बहु, लीजै वस्तु पहिचान।
नाम पक्ष नहिं कीजिये, सार तत्त्व ले जान।।२२०७।।— संत कबीर दास साहेब
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नाम अनन्त जो ब्रह्म का, तिनका वार न पार।
मन मानै सौ लीजिये, कहै कबीर बिचार।।२२०८।।— संत कबीर दास साहेब
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सब काहू का लीजिये, सांचा शब्द निहार।
पक्षपात ना कीजिये, कहै कबीर बिचार।।२२०९।।— संत कबीर दास साहेब
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राम कबीरा एक है, दूजा कबहु न कोय।
अंतर टाटी कपट की, ताते दीखे दोय।।२२१०।।— संत कबीर दास साहेब
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राम कबीरा एक है, कहन सुनन को दोय।
दो करि सोई जानई, सतगरु मिला न हाय।।२२११।।— संत कबीर दास साहेब
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हरि का बना स्वरूप सब, जेता यह आकार।
अक्षर अर्थ यों भाषिये, कहै कबीर बिचार।।२२१२।।— संत कबीर दास साहेब
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देखनही की बात है, कहने को कछु नाहिं।
आदि अंत को मिलि रहा, हरिजन हरिही माहिं।।२२१३।।— संत कबीर दास साहेब
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नगर चन तब जानिये, जब एकै राजा होय।
याहि दुराजी राज में, सुखी न देखा कोय।।२२१४।।— संत कबीर दास साहेब
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सबै हमारे एकहैं, जो सुमिरै हरि नाम।।
वस्तु लही पहिचान कै, बासन सों क्या काम।।२२१५।।— संत कबीर दास साहेब
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कांसे ऊपर बीजुरी, परै अचानक आय।
तात निर्भय ठीकरा, सतगुरु दिया बताय।।२२१६।।— संत कबीर दास साहेब
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हद्द छांडि बेहद गया, लिया ठीकरा हाथ।
भया भिखारी दीन का, दर्शन भया सनाथ।।२२१७।।— संत कबीर दास साहेब
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हद्द छांडि बेहद गया, अबरन किया मिलान।
दास कबीरा मिलि रहा, सो कहिये रहमान।।२२१८।।— संत कबीर दास साहेब
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बेहद बिचारौ हद तजौ, हद तजि मेलो आस।
सबै अलिंगन मेटिकै, करौ निरन्तर वास।।२२१९।।— संत कबीर दास साहेब
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निरन्तर बासी निरमला, शून स्थूल सो निनार।
पूरब गंगा पश्चिम बहावै, पेखे बहु उजियार।।२२२०।।— संत कबीर दास साहेब
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बेहद्द अगाधी पीव है, ये सब हदके जीव।
जे नर राते हद्दसो, ते कदी न पावै पीव।।२२२१।।— संत कबीर दास साहेब
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हदमें पीव न पाइये, बेहद में भरपूर।
हद बेहद की गम लखै, तासौं पीव हजूर।।२२२२।।— संत कबीर दास साहेब
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हद बंधा बेहद रमैं, पल पल देखै नूर।
मनवा तहां ले राखिया, जहां बाजै अनहद तूर।।२२२३।।— संत कबीर दास साहेब
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हद्द मांहि हदका घनां, लीया जीव तुराय।
रिगसि बिगसि बेहद गया, मरै न आवै जाय।।२२२४।।— संत कबीर दास साहेब
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हद छांडि बेहद गया, रहा निरन्तर होय।
बेहद के मैदान में, रहा कबीरा सोय।।२२२५।।— संत कबीर दास साहेब
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हद्द छाडि बेहद गया, तासों राम हजूर।
पारब्रह्म परचा भया, अब नियरे तब दूर।।२२२६।।— संत कबीर दास साहेब
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हद में बैठा कथन है, बेहद की गम नाहिं।
बेहद की गम होयगी, तब कछु कथना काहि।।२२२७।।— संत कबीर दास साहेब
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कबिरा हद के जीव सों, हित करि मुखै न बोल।
जो राचे बेहद सों, तिनसों अन्तर खोल।।२२२८।।— संत कबीर दास साहेब
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हदिया सेतो हद रहो, बेहदिया बेहद।
जो जैसा तहा रोगिया, तहा तैसी औषद।।२२२९।।— संत कबीर दास साहेब
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हद में रहैं सो मानवी, बेहद रहै सो साध।
हद बेहद दोनों तजैं, तिनका मता अगाध।।२२३०।।— संत कबीर दास साहेब
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हद बेहद दोनों तजी, अबरन किया मिलान।
कहै कबीर ता दास पर, वारों सकल जहान।।२२३१।।— संत कबीर दास साहेब
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अगह गह अकह कहै, अनभेदा भेद लहाइ।
अनभै बाणी आगम की, लेगई संग लगाइ।।२२३२।।— संत कबीर दास साहेब
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जहां शोक ब्यापै नहीं, चल हंसा उस देस।
कहै कबीर गुरगम गहो, छांडि सकल भ्रम भेस।२२३३।।— संत कबीर दास साहेब
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अंग अठोत्तरसौ कहा, परम पुरुष उपदेश।
कहै कबीर अब हरि मिलै, मानौं साख संदेश।।२२३४।।— संत कबीर दास साहेब
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जन कबीर बंदन करै, किस विधि कीजै सेव।
बार पार की गम नहीं, नमो नमो निज देव।।२२३५।।— संत कबीर दास साहेब
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मांस अहारी मानवा, प्रत्यक्ष राक्षस जानि।
ताकी संगति मति करै, होइ भक्ति में हानि।।२२३६।।— संत कबीर दास साहेब
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मांस खाये ते ढेड़ सब, मद पीवै सा नीच।
कुल की दुरमति पर हरै, राम कहै सो ऊंच।।२२३७।।— संत कबीर दास साहेब
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मांस मछलिया खात हैं, सुरापान से हेत।
ते नर नरकै जाहिंगे, माता पिता समेत।।२२३८।।— संत कबीर दास साहेब
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मांस मछलिया खात हैं, सुरापान सों हेत।
ते नर नरकै जांहिंगे, ज्यों मूरी का खेत।।२२३९।।— संत कबीर दास साहेब
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मांस भखै औ मद पिये, धन वेश्या सों खाय।
जूआ खेलि चोरी करै, अंत समूला जाय।।२२४०।।— संत कबीर दास साहेब
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मांस मांस सब एक है, मुरगी हिरनी गाय।
आंखि देखि नर खात है, ते नर नरकहिं जाय।।२२४१।।— संत कबीर दास साहेब
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यह कूकर को भक्ष है, मनुष्य देह क्यों खाय।
मुख में आमिख मेलिके, नरक परते जाय।।२२४२।।— संत कबीर दास साहेब
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ब्राह्मन राजा बरन का, और पवनी छत्तीस।
रोटी ऊपर माछली, सब बरन भये खबीस।।२२४३।।— संत कबीर दास साहेब
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कलियुग केरा ब्राह्मना, मांस मछलिया खाय।
पांय लगे सुखमानई, राम कहे जारि जाय।।२२४४।।— संत कबीर दास साहेब
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पापी पूजा बैठिकै, भखे मांस मद दाइ।
तिनकी दीक्षा मुक्ति नहिं, कोटि नरक फल होई।।२२४५।।— संत कबीर दास साहेब
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सकल बरन एकत्र ह्व, शक्ति पजि मिलि खाहि।
हरि दासन की भ्रांति करि, केवल जमपुर जाहिं।।२२४६।।— संत कबीर दास साहेब
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विष्ठा का चौका दिया, हांडी सीझै हाड।
छूति बचवै चास की, तिनहूं का गुरु राड।।२२४७।।— संत कबीर दास साहेब
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जीव हनै हिंसा करै, प्रगट पाप सिर होय।
पाप सबै जो देखिया, पुन्य न देखा कोय।।२२४८।।— संत कबीर दास साहेब
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जीव हनै हिंसा करै, प्रगट पाप सिर होय।
निगम पुनि ऐसे पाप तें, भिस्त गया नहिं कोय।।२२४९।।— संत कबीर दास साहेब
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हत्या सोही हन्नसी, भावै जानि बिजान।
कर गहि चोटी तानसी, साहब के दीवान।।२२५०।।— संत कबीर दास साहेब
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तिलभर मछली खाय के, कोटि गऊ दै दान।
काशी करात लै मरै, तो भी नरक निदान।।२२५१।।— संत कबीर दास साहेब
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काटि कटि जबह करै, या पाप संग का भेस।
निश्च राम न जानही, कहै कबीर संदेस।।२२५२।।— संत कबीर दास साहेब
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बकरी पाती खात है, ताकी काढी खाल।
जो बकरी को खात है, तिनका कौन हवाल।।२२५३।।— संत कबीर दास साहेब
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आठ बाट बकरी गई, सांस मुलां गये खाय।
अजहूं खाल खटीकै, भीस्त कहांते जाय।।२२५४।।— संत कबीर दास साहेब
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अंडा किन बिसमिल किया, घुन किया किन हलाल।
मछली किन जबह करी, सब खाने का ख्याल।।२२५५।।— संत कबीर दास साहेब
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मुल्ला तझै करीम का, कब आया फरमान।
घट फोरा घर घर किया, साहब का नीसान।।२२५६।।— संत कबीर दास साहेब
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काजी का बेटा मुआ, उरमैं सालै पीर।
वह साहब सबका पिता, भला न मानै बीर।।२२५७।।— संत कबीर दास साहेब
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पीर सबन को एकसी, मूरख जानैं नाहिं।
अपना गला कटायक, भिश्त बसै क्यों नाहिं।।२२५८।।— संत कबीर दास साहेब
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मुरगी मुल्ला सों कहै, जबह करत है मोहिं।
साहब लेखा मांगसी, संकट परिहै तोहिं।।२२५९।।— संत कबीर दास साहेब
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कबिरा काजी स्वाद बस, जीव हते तब दोय।
चढ़ि मसीत एको कहै, क्यों दरगह सांचा होय।।२२६०।।— संत कबीर दास साहेब
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काजी मुल्लां भरमिया, चले दुनी के साथ।
दिल सो दीन निवारिया, करद लई तद हाथ।।२२६१।।— संत कबीर दास साहेब
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काला मुंह करि करद का, दिल सूं दई निवार।
सब सूरति सुबहान की, अहमक मुला न मार।।२२६२।।— संत कबीर दास साहेब
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जोरी करि जबह करै, मुखसों कहै हलाल।
साहब लेखा मांगसी, तब होसी कौन हवाल।।२२६३।।— संत कबीर दास साहेब
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जोर कीयां जुलूम है, मागै ज्वाब खदाय।
खलिक दर खूनी खड़ा, मार मुही मुंह खाय।।२२६४।।— संत कबीर दास साहेब
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कबिरा साई पीर हैं, जो जानै पर पीर।
जो पर पीर न जानि है, सो काफिर बपीर।।२२६५।।— संत कबीर दास साहेब
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कमोदनीं जलहरि बसै, चंदा बसे अकासि।
जो जाही का भावता, सो ताही कै पास।।२२६६।।— संत कबीर दास साहेब
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कबीर गुर बसै बनारसी, सिष समंदां तीर।
बिसारया नहीं बीसरै, जै गुंण होई सरीर।।२२६७।।— संत कबीर दास साहेब
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जो है जाका भावता, जदि तदि मिलसी आइ।
जाकौं तन मन सौंपिया, सो कबहूं छाड़ी न जाइ।।२२६८।।— संत कबीर दास साहेब
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स्वामी सेवक एक मत, मन ही मैं मिलि जाइ।
चतुराई रीझै नहीं, रीझै मन कै भाइ।।२२६९।।— संत कबीर दास साहेब